हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण और विवादित धारा, यानी कि Article 370 के समाप्ति पर एक महत्वपूर्ण फैसला किया है। इसका मतलब है कि जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से समान रूप से जोड़ने वाली इस धारा को समाप्त कर दिया गया है। इस फैसले की समझ और महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने के लिए हम इस पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: Article 370 के समाप्ति पर
धारा 370 भारतीय संविधान का एक अनौपचारिक विभाजन था, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष स्थान प्रदान किया था। इसके तहत, जम्मू-कश्मीर को विशेष रूप से स्वायत्तता और अन्य विशेषाधिकारों का अधिकार था। इस धारा के बजाय अन्य भागों के साथ मिलकर, जम्मू-कश्मीर को अपने स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार था।
हाइलाइट्स:
- Article 370 से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बैठी संविधान बेंच
- पांच जजों ने 16 दिनों में संविधान पीठ की सम्पूर्ण सुनवाई पूरी की थी।
अनुच्छेद 370 के समाप्ति का प्रस्ताव:
भारत सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से Article 370 को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा था, जिससे वह भारत के अन्य हिस्सों के साथ समान हक और कर्तव्यों का हिस्सा बन सकता था। यह प्रस्ताव बड़े परिवर्तन की और संकेत कर रहा था और इसका समर्थन और विरोध दोनों ही थे।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने Article 370 के समाप्ति के संबंध में एक विशेष बेंच की गठन की और उसने यह देखने का प्रयास किया कि धारा 370 के समाप्ति का निर्णय संविधान के अनुसार है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का मत है कि Article 370 के समाप्ति का निर्णय संविधान के अनुच्छेद 370(3) के तहत संविधान के सभी धाराओं के लिए बाध्यकारी है। इसका अर्थ है कि संविधान ने यह स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है कि संविधान की Article 370 को समाप्त करने का एकमात्र उपाय संविधान के Article 370(3) है और किसी अन्य विधि से नहीं।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ इस बेंच के प्रमुख थे। इस बेंच में सीजेआई के अलावा, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे। सीजेआई, जस्टिस गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने एक फैसला दिया। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसके कौल ने अलग फैसला लिखा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 370 पर आयोजित फैसले में मुख्य बिंदुओं की महत्वपूर्ण बातें:
- सीजेआई ने कहा कि जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं होती हैं।
- अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति का प्रयोग करने की उचित वजह होनी चाहिए।
- संविधान ने यह संकेत नहीं दिया कि जम्मू-कश्मीर ने संप्रभुता बरकरार रखी है।
- जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग बन गया है, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है।
- Article 370 एक अस्थायी प्रावधान है। CJI ने कहा- Article 370 (3) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना जारी करने की शक्ति कि Article 370 का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के विघटन के बाद भी कायम रहती है।
- हमें यह निर्धारित करना आवश्यक नहीं लगता कि जम्मू-कश्मीर का संघ शासित प्रदेश में पुनर्गठन वैध है या नहीं।
- केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख के पुनर्गठन को बरकरार रखा गया है क्योंकि अनुच्छेद 3 राज्य के एक हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देता है।
- सीजेआई ने अपने आदेश में कहा, यह सवाल खुला है कि क्या संसद किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल सकती है।
- हम निर्देश देते हैं कि भारत के चुनाव आयोग द्वारा 30 सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए कदम उठाए जाएं।
- राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा।
जम्मू और कश्मीर ने धारा 370 के माध्यम से एक विशेष स्थान प्राप्त किया। इसमें कुछ विशेष विधियाँ थीं।:
- जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों के पास भारतीय नागरिकों से परे अधिकार थे।
- जम्मू-कश्मीर के पास एक अलग से झंडा था।
- जम्मू-कश्मीर विधानसभा की कार्यकाल छह वर्ष था।
- किसी भी संविधान संशोधन को Article 370 के तहत राष्ट्रपति के आदेश के बाद जम्मू-कश्मीर पर लागू किया गया।
- पार्लियामेंट को जम्मू-कश्मीर के लिए सीमित क्षेत्रों में कानून बनाने का अधिकार था।
Article 35A:
धारा 35A भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है जो जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों को कुछ विशेष अधिकार प्रदान करता है। यह अनुच्छेद Article 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को समर्थन देने के लिए जोड़ा गया था।
Article 35A के तहत, संविधान के इस अनुच्छेद ने जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासियों को कई विशेष अधिकार प्रदान किए हैं, जिनमें उनकी भूमि संपत्ति, रोजगार, और अन्य क्षेत्रों में विशेष अधिकार शामिल हैं। इसका उद्देश्य था कि जम्मू-कश्मीर के निवासियों को अपनी स्थानीय विकास और सुरक्षा के क्षेत्र में स्वतंत्रता मिले।
हालांकि, Article 35A पर कई विवाद और विरोध हुआ है, जिसमें कई लोग इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देने के लिए उतरे हैं और उनका कहना है कि यह अनुच्छेद संविधान की समानता और न्याय के आदर्शों के खिलाफ है।
Accession And After : (सम्मिलन और बाद में)
- 26 अक्टूबर 1947 को जब पाकिस्तान सेना के समर्थन में आक्रमणकारी समूहों ने हमला किया, महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी, जिससे उन्हें अंत में सम्मिलन प्रमाणपत्र (Instrument of Accession - IOA) पर हस्ताक्षर करना पड़ा।
- 27 मई 1949 को भारत की संविधान सभा ने Article 370 का मसौदा मंजूर किया, जैसा कि सम्मिलन प्रमाणपत्र (IOA) में निर्धारित था।
- 1 मई 1951 को डॉ. करण सिंह ने एक घोषणा जारी की जिसमें उन्होंने राज्य के लिए संविधान सभा को बुलाने की सूचना दी।
- 1952 में शेख अब्दुल्लाह और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच दिल्ली समझौता हुआ, जिससे भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच के संबंधों को विस्तारित किया गया।
- मई 1954 में, एक राष्ट्रपति आदेश के माध्यम से धारा 35A को प्रस्तुत किया गया, जिसका उद्देश्य राज्य विधायिका द्वारा पारित स्थायी निवासियों के संबंध में बनाए गए कानूनों की सुरक्षा करना था।
- 17 नवंबर 1957 को जम्मू-कश्मीर का संविधान अपनाया गया, और यह 26 जनवरी 1958 को लागू हुआ।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविधान के महत्वपूर्ण Article 370 के समाप्ति के संबंध में एक साफ़ और स्पष्ट स्थिति स्थापित करता है। इससे जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ समान रूप से जोड़ने का एक नया मार्ग प्रशस्त हो गया है और यह समर्थन और विरोध दोनों के बीच एक नया संविदानिक संवाद की शुरुआत हो सकती है।
Today's Supreme Court verdict on the abrogation of Article 370 is historic and constitutionally upholds the decision taken by the Parliament of India on 5th August 2019; it is a resounding declaration of hope, progress and unity for our sisters and brothers in Jammu, Kashmir and…
— Narendra Modi (@narendramodi) December 11, 2023